बनारस के ढाखा ग्राम में गंगा तट पर युवा मुस्लिम कथाकार मो फ़ैज़ कुछ अलग कर रहे हैं। वह वहाँ पर गौ कथा कर रहे हैं। . क्षेत्र में पहली बार आयोजित हो रही अपने आप में एक अलग तरह की कथा के प्रति आकर्षित होकर आस पास के कई गाँवों से बड़ी संख्या में श्रोता कथा स्थल पर जुटकर उसकी बात सुन रहे हैं।
अनीता बरार से बात करते हूये, अजय सिंह बताते हैं कि मो फ़ैज़ के प्रति बड़ी संख्या में लोग आकर्षित हो रहे हैं। वह लोगों के लिये कौतूहल का विषय बने हुवे हैं। वो पूरे हिन्दू संतों की लिबास में रामनामी ओठ कर गाय की महत्ता और उसकी रक्षा के लिये गो कथा करते हैं।
उनकी संस्कृत निष्ठ शुद्ध हिन्दी भाषा और हिन्दू धार्मिक वैदिक ग्रंथों पर उनकी गहराई के साथ पकड़ लोगों को अचम्भित कर रही है।
कथाकार मो फैज़ खान कहते हैं कि " इस्लाम में गाय के दूध को शिफ़ा कहा गया है गऊ मांस को बिमारी कहा गया शूराय हज़ कुरआन शरीफ़ में आयत 37 में कहा गया है की नहीं पहुंचता अल्लाह के पास रक्त और मांस खुदा के पास पहुंचता है तुम्हारा त्याग। इस्लाम ये भी बताता है कि जिस देश में रहो उस देश की तहजीब का सम्मान करो और गाय का सम्मान करना ही हिन्दोस्तान की तहजीब का सम्मान करना है
वो कहते हैं कि राजनेता धर्म के आधार पर छुद्र राजनीति करते हैं छोटी राजनीति करते है वो कभी नहीं चाहते कि गऊ आंदोलन सर्वसमाज के बीच सर्व धर्मो के बीच व्यापक हो प्रचारित हो क्योंकि वो भी उनकी वोट बैंक की राजनीति का एक हिस्सा है कि गाय के नाम पर लोग लड़ते रहे कोई गऊ रक्षा के नाम पर वोट हासिल करता रहे कोई गऊ ह्त्या कर तथाकथित धर्म निरपेक्षता पर राजनीती करते रहे
मो फैज़ खान छत्तीसगढ़ के रायपुर जिले के रहने वाले हैं। पीएचडी करने के बाद शासकीय महाविद्यालय सूरजपुर छत्तीसगढ़ में राजनीती विभाग में अध्यापक हो गये। वहीँ उन्होंने लेखक गिरीश पंकज की एक उपन्यास एक गाय की आत्म कथा पठी और ढाई साल पहले नौकरी छोड़कर देश में गऊ कथा करने निकलपड़े।
कई जगह इन्हे विरोध भी झेलना पड़ा पर ये रुके नहीं। जिसका असर भी दिखाई पड रहा है। कथा सुनने वालों का मानना है कि फैज़ खान जिस तरह कोशिश कर रहे है और जिस तरह से अन्य लोगों को प्रेरित कर रहे है तो सद् भावना की बहुत बड़ी क्रान्ति इस देश में आयेगी ।
और अजय सिंह मानते कि वह आधुनिक युग के कबीर हैं जो धर्म और मज़हब पर राजनीती और ऐसे विवाद को रोकने में एक बड़ी मदद कर सकते हैं।