1976 में एक मराठी फिल्म घाशीराम कोतवाल से पने फिल्मी सफर की शुरुवात की।
एक साधाहरण सा चेहरा जो आपके आसपास दिखाई देता है लेकिन अपने कमाल के अभिनय से वही चेहरा भीड़ से अलग खड़ा दिखाई दिया।
अपने हावभाव से वह कह डाला जो शब्दों की भीड़ भी न कह सकी। उसका स्पष्ट उदाहरण बना फिल्म आक्रोश में उनका भीखू का किरदार।
अर्धसत्य के अधिकार हीन इंस्पेक्टर हो या गुप्त के कठोर , चाइना गेट के असफल कर्नल हों या कुर्बान के आतंकी, ओम पुरी ने अपने आप को हर रोल में इस तरह ढ़ाला कि वह कोई काल्पनिक किरदार नहीं ब्लकि सच ही लगने लगा।
ओम पुरी जो कभी अँग्रेजी बोलने से भी घबराते थे, उन्होंने अँग्रेजी भाषा की 20 से भी अधिक फिन्में कर डाली।
कहते हैं कि उनके व्यक्तिगत जीवन में कुछ तूफान आये और वह बहुत ही भावुक हो चले थे।
फिल्म अर्धसत्य और आरोहण के लिये उनहें राष्ट्रीय सम्मान मिला और फिल्मफेयर की तरफ से उन्हें लाइफ टाइम अचीवमेंट से सम्मानित किया गया।
इसके अलावा वह पद्मश्री तथा ऑर्डर ऑफ ब्रिटिश अम्पायर से भी सम्मानित किये गये थे।
ओम पुरी जैसे उत्कृष्ट अभिनेता फिल्मी दुनिया के लिये एक मील का पत्थर ही रहेगे और उनकी जगह खाली ही रहेगी।
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