Key Points
- किसी भी सदमें का मस्तिष्क के बनाव और क्षमता पर बड़ा प्रभाव पद सकता है।
- सही सहायता के साथ, एक बालक हाल के या अतीत के सदमें से उबर सकता है।
- किसी-किसी मामले में विशेषज्ञ की सहायता अनिवार्य है।
डॉ डेव पसलीच ऑस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ़ मेडिसिन एंड साइकोलॉजी में वरिष्ठ लेक्चरर और क्लीनिकल मनोवैज्ञानिक हैं। उनका कहना है कि सदमा यानी ट्रॉमा कई वजहों से हो सकता है।
वह समझाते हैं, "बच्चों को खतरनाक या डरावनी परिस्थितयों के बाद ट्रॉमा हो सकता है। इसके बाद वे व्यग्र, परेशान या असहाय महसूस कर सकते हैं।"
"प्राकृतिक आपदाएं, या सड़क दुर्घटना, युद्ध, हिंसा, शोषण या अपने अभिभावकों से असहज बिछोह ऐसी परिस्थितियां हो सकती हैं जिससे बच्चों को सदमा लग सकता है।"
नोर्मा बौल्स ग्रेटर सिडनी के पैरामैटा में कम्युनिटी माइग्रेंट रिसॉर्स सेंटर (सीएमआरसी) में अर्ली इंटरवेंशन प्रोजेक्ट अधिकारी हैं।
सीएमआरसी नए प्रवासियों, रिफ्यूजियों और मानवीय आधार पर देश में आये लोगों को विशेषज्ञ सहायता मुहैया कराता है।
सुश्री बौल्स ऐसे माता-पिता और अभिभावकों के साथ काम करती हैं जिनके बच्चों ने युद्ध, बेघरी, या घर पर शोषण जैसी त्रासदियों का सामना किया है।
"जब तीन या चार साल के बच्चे उग्र व्यवहार करते हैं, मैं शुरू से ही समझ जाती हूँ कि इस बच्चे को किसी बात का सदमा लगा है।"
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As well as focusing on individual cases, Mrs Boules also runs a few parenting education programs, including the Circle of Security, a program that helps parents understand their child’s emotional world. Credit: Mikael Vaisanen/Getty Images
सदमे का मस्तिष्क पर प्रभाव
डॉ पसलीच का कहना है कि विकासशील उम्र में लगा सदमा खासकर मस्तिष्क की बनावट और क्षमता पर बड़ा प्रभाव डाल सकता है।
वे कहते हैं, "संक्षिप्त में समझें तो, सदमा लगने के बाद बच्चे के लिए पूरी दुनिया उलट जाती है, और वह सबकुछ जो सुरक्षित था, अब डरावना और खतरनाक हो गया है।"
वे आगे कहते हैं, "हम यह जानते हैं कि सदमा केवल बच्चे के मस्तिष्क और सामाजिक-भावनात्मक विकास को ही नहीं, बल्कि दीर्घकालिक कल्याण पर भी बड़ा प्रभाव डाल सकता है।"
वे बताते हैं कि सामान्य तौर पर, सदमा बच्चों के व्यवहार, उनकी सोच, उनकी भावनाओं, और उनके लोगों के साथ बनने वाले संबंधों पर प्रभाव डाल सकता है। इसलिए, सदमे के बाद बच्चों के घर और स्कूल दोनों में व्यवहार प्रभावित हो सकते हैं।
सदमे के बाद बच्चा व्याकुल हो सकता है, और इसलिए आसपास के खतरे को आवश्यकता से अधिक आंक सकता है। इसके चलते वे हर समय असुरक्षित और डरा हुआ महसूस कर सकते हैं।डॉ डेव पसलीच
डॉ डेव पसलीच कहते हैं कि मस्तिष्क की अंगिय व्यवस्था, खासकर अमिग्डाला यानी प्रमस्तिष्कखंड खतरों के जोखिम को लेकर अधिक सतर्क हो सकता है, जिससे बच्चे में तनाव डर पैदा हो सकता है।
वे समझाते हैं, "जो बच्चे लम्बे समय तक सदमे का सामना करते हैं, उनके शरीर और मस्तिष्क उत्तरजीविता यानी सर्वाइवल मोड में चला जाता है। वे ऐसा इसलिए करते हैं ताकि वे आसपास के सतत खतरे और अराजकता का सामना कर सकें।"
ब्री डे ला हार्प सिडनी के बी सेंटर फाउंडेशन में प्ले थेरेपिस्ट हैं। वे कहती हैं कि बच्चे अगर हर समय जोखिम की तैयारी ही कर रहे होते हैं, तो उन्हें अपने व्यवहार का होश कम रहता है।
वे समझाती हैं, "वे अपने मस्तिष्क के उस हिस्से में होते हैं जहां वे यह समझ ही नहीं पाते कि वे किसी के साथ लड़ रहे हैं, या स्कूल से गायब हो रहे हैं। उनके दिमाग का वो हिस्सा जो खुद को बस सुरक्षित रखना चाहता है, उनपर हावी हो जाता है।"
वे आगे कहती हैं, "उनकी पूरी तंत्रिका व्यवस्था बस एक ही बात समझ पाती है कि उन्हें अपनी रक्षा करनी है क्योंकि वे सुरक्षित महसूस नहीं कर रहे।"
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As well as showing hyperarousal symptoms, such as hyperactivity, hypervigilance or being easily frightened or startled, a child can also show signs of the hypoarousal —where the child may seem physically slow or sluggish in their movements, may struggle to concentrate, may withdraw from social interactions and may seem less engaged with their surroundings. Credit: MoMo Productions/Getty Images
माता-पिता और अभिभावक मदद करने के लिए क्या कर सकते हैं?
मेलनी डीफहोल्ट्स एक सलाहकार हैं और पिछले 14 साल से ऑस्ट्रेलिया-भर में माता-पिता और शिक्षकों को समर्थन देती हैं। वे माता-पिता और अभिभावकों को सलाह देती हैं कि उन्हें अपने मानसिक और भावनात्मक कल्याण का ध्यान रखना चाहिए।
वे कहती हैं, "मेरे अनुसार, किसी बच्चे के लिए स्थायित्व बनाने का अर्थ यह समझना भी है कि उस स्थायित्व की ज़मीन आपसे जुड़ी है। इसलिए खुद से यह पूछना कि आप कैसे हैं ज़रूरी है।"
डॉ डेव पसलीच माता-पिता या अभिभावकों का बच्चे की भावनाओं और आवश्यकताओं को समझने का महत्व समझाते हैं।
वे कहते हैं, "सबसे पहले तो माता-पिता के लिए 'सेंसिटिव पेरेंटिंग' अपनाना बहुत आवश्यक है। इसका अर्थ यह है कि आप समझें कि आपके बच्चे का व्यवहार आपसे क्या कह रहा है, और कौनसी गहरी ज़रूरतों को दर्शा रहा है।"
उदाहरण के तौर पर, अगर एक बच्चा असुरक्षित महसूस कर रहा है, और उनके आसपास की दुनिया अप्रत्याशित है, तो वे कोशिश करेंगे कि वे सबकुछ अपने नियंत्रण में रखें, या वे उग्र भी हो सकते हैं। डॉ पसलीच समझाते हैं कि इस नियंत्रित करने वाले व्यवहार पर प्रतिक्रिया देने से पहले सोचें, और बच्चे की गहरी सुरक्षा की ज़रुरत को पूरा करने की ओर ध्यान दें।
वे सुझाते हैं, "इस नियंत्रित करने वाले व्यवहार पर प्रतिक्रिया देने से पहले हमें सोचना चाहिए, और बच्चे की गहरी सुरक्षा की ज़रुरत को पूरा करने की ओर ध्यान देना चाहिए। आपके बच्चे के स्वस्थ्य होने के लिए यह बहुत आवश्यक है आप संयत रहें और आपका व्यवहार प्रेमपूर्वक होना चाहिए।"
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Dr Pasalich says if a parent is able to provide a supportive relationship and family for that child, many children do recover naturally from traumas. Credit: aquaArts studio/Getty Images
टियाना विलसन बी सेंटर फाउंडेशन में प्ले थेरेपिस्ट हैं और एक मनोचिकित्सक भी हैं। उनका कहना है की ऐसा ज़रूरी नहीं है कि स्वस्थ्य होने के लिए सदमा हाल ही का हो। अतीत के सदमों का उपचार भी संभव है।
बहुत सदमें ऐसे होते हैं जो बच्चे की सुप्त चेतना में हो सकते हैं। इनका उपचार, संभाला जाना, समर्थन किया जाना और पोषित किया जाना संभव है। ज़रूरी नहीं है कि सब चीज़ का त्वरित उपाय हो। लेकिन जितनी जल्दी ऐसे मामलों में समर्थन और उपचार मिले, उतना बेहतर।टियाना विलसन
डॉ डेव पसलीच सुझाते हैं कि कुछ मामलों में विशेषज्ञ की सहायता अनिवार्य हो जाती है।
"यह अपेक्षित रहता है कि ऐसे बच्चे जो सदमे से गुज़रे हों, अपने आसपास के माहौल में सहज होने के लिए कुछ समय लें। लेकिन अगर आपके बच्चे में कोई बदलाव नहीं आ रहा, या समस्या बढ़ रही है और उनकी रोज़मर्रा की ज़िन्दगी पर प्रभाव डाल रही है, तो यह आवश्यक है कि आप किसी विशेषज्ञ की मदद लें।"
कहां मिलेगी सहायता
- आपके जीपी (चिकित्सक), मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ, जैसे मनोचिकित्सक, मनोवैज्ञानिक, सलाहकार या सामाजिक कार्यकर्ता
- आपका स्थानीय सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र
- को पर संपर्क करें।
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